नदी और समंदर

पितृ गृह से जब इक धारा संकरी चल कर आई
वन,उपवन,हिम पर्वतों से हुई उसकी यूँ विदाई
अनजानी मंजिल है उसकी और अपरिचित सी राह
दूर समंदर तकता रस्ता और आंखों में रौनक छाई।
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बूँद बूँद रिसती,है वो दुर्बल,निर्बल धारा
ऊंचे नीचे रस्ते,नपे-तुले पग धरती धारा
जाने कब अल्हड़पन इसमें भर आया है
दूर समंदर उसके इंतजार में जीता अपना जीवन सारा।
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लिखे गए अनंत गीत,नदियों के संघर्षों पर
मीठापन मिट जाने के, गृह के विछोह दर्दों पर
प्रकट नहीं कर पाया समंदर कभी अपने एहसासों को
लेकर लांछन खारेपन का,जीता है अनंत आस पर।
अपर्णा शर्मा
Dec.26th,25

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होशियारी

जब तलक, रखे था वो,अपना सादा मिजाज
छला जाता रहा,वो, हर वक़्त, हर एहसास।
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सीख लेता गर वो,ज़माने की जरा भी होशियारी
जिंदगी में आ जाता उसके सुकून भरा इत्मिनान।
अपर्णा शर्मा
Dec.23rd,25

फैसला


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        आज गायत्री देवी जी सवेरे से ही घर के कोने-कोने की सफाई का काम देख रही थी। महीनों से अपने बड़े बेटे के रिटायर्ड होने पर उसके आने की खुशी में वो सातवें आसमान पर थी। आज उनका यह सपना सच होने जा रहा था।
      बड़ा बेटा निखिल एयर फोर्स में था। सत्रह वर्ष की अवस्था में ही, उसका चयन एनडीए में हो गया था। जब बच्चे अपने कैरियर के बारे में सोचते हैं वह अपना मुकाम पा चुका था।
     आज बीस वर्ष अपनी सेवा देने के पश्चात वह अपने गृह निवास आ रहा है।  गायत्री देवी सोच रही है कि ऐसे ही मैं और मेरे पति रिटायर्ड होकर इस घर में आए थे जो मेरे ससुर जी का घर था।सेवानिवृत्त के समय मेरे पति सोच रहे थे कि अब हमें कहाँ रहना चाहिए?
        बहुत सोच विचार के बाद, उनके इस फैसले ने मेरे सास ससुर के चेहरे पर मुस्कान लादी थी कि अब हम माँ बाऊ जी के साथ रहेंगे। इनके विचार से जहाज का पंछी कहीं भी उड़े, लौट कर जहाज पर ही आता है।
            इनके इसी फैसले के कारण,मुझे भी आज यह खुशी मिल रही है। मेरे जहाज का पंछी भी आज अपने जहाज पर बसेरा करने आ रहा है। एक सही फैसला घर की परिपाटी बन जाता है, जिसे मैं आज स्वयं जिवंत होते देख रही हूँ। 
        गायत्री देवी जी के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है और वह उत्साह से घर की व्यवस्था देखने लगती है।
अपर्णा शर्मा
Dec.19th,25

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